Belha Devi full Documentary 2018 | बेल्हा देवी की सम्पूर्ण पौराणिक कथा | Pratapgarh UP
अगर आप कभी प्रतापगढ़ आयें और बेल्हा देवी के दर्शन न करें तो प्रतापगढ़ के पौराणिक स्थल के दर्शनों का लाभ नहीं ले पाएंगे। बेल्हा देवी के मंदिर तक पहुंचना बहुत ही आसान है इलाहाबाद फैजाबाद रोड से गुजरते हुए आपको सईं नदी पुल से मां बेला देवी का भव्य दर्शन होगा। चाहे आप फैजाबाद से आ रहे हो या इलाहाबाद से, सदर चौराहे से मात्र 200 मीटर दूर सई नदी के घाट पर मां बेल्हा देवी विराजमान हैं।
अवध रियासत के राजा प्रताप बहादुर सिंह ने 1811 से लेकर 1815 के बीच में बेल्हा देवी के मुख्य मंदिर का निर्माण करवाया था जिसमें दुर्गा जी के एक अन्य रूप बेल्हा भवानी की मुख्य प्रतिमा स्थापित है।
अवध स्टेट की सुरक्षा के लिए मां बेल्हा देवी के इस मंदिर का निर्माण किया गया था। प्रतापगढ़ के राजा ने मां बेल्हा देवी की पूजा अर्चना करने के लिए पुजारी को नियुक्त किया। जब राजतंत्र का लोकतंत्र में विलय हो गया तब मंदिर में नियुक्त पुजारी मन्दिर के स्वतंत्र संचालक हो गए और आसपास की जमीन मंदिर के आधीन हो गई। तब से यह संस्था श्रद्धालुओं के लिए निरंतर मंदिर को और अधिक सुविधाजनक एवं परिष्कृत करने का प्रयास कर रही है।
बेला देवी के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब राजा दशरथ ने अपने परम प्रिय पुत्र राम को 14 वर्ष का वनवास भोगने के लिए कहा तब अयोध्या से चित्रकूट जाते समय सई नदी को पार करने के पश्चात उन्होंने कुछ समय नदी के किनारे उगे जंगलों में व्यतीत किया था। इस निवास काल के दौरान श्रीराम प्रतिदिन प्रातः काल सई नदी में स्नान करने के पश्चात नदी के तट पर पड़े विचित्र पत्थरों को उठाकर लाते एवं ऊंचाई पर एकत्रित कर देते। इन पत्थरों के माध्यम से वह इस बात की गणना करते कि कितने दिनों तक उन्होंने अपना समय यहां पर व्यतीत किया।
जब भगवान श्री राम यहां से चले गए तो कुछ समय पश्चात उनके द्वारा इकट्ठे किए गए पत्थरों के ढेर से बेला के सुंदर पुष्प उत्पन्न हुए जिसकी सुगंध से वहां के आसपास का वातावरण प्रफुल्लित हो उठा। धीरे धीरे स्थानीय लोगों द्वारा यह जगह पूजनीय हो गई। बेला के पुष्पों के कारण बाद में इस जगह को बेला देवी का स्थान कहा जाने लगा।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम को ढूंढते हुए भरत यहां पहुंचे तब स्थानीय लोगों द्वारा यह बतलाया गया कि भगवान श्री राम यहां कुछ समय के लिए रुके थे। अतः भरत ने भी बेला देवी के नाम से स्थापित उन पत्थरों की पूजा अर्चना करते हुए उतना ही समय यहां पर गुजारा जितना वनवास के लिए जाते समय भगवान श्रीराम ने गुजारा था।
इस पौराणिक कथा के कारण मन्दिर परिसर में ही पूर्वी भाग पर एक राम मन्दिर का निर्माण यहाँ के मूल निवासी भारत सिंह गांधी द्वारा करवाया गया।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शंकर का सम्मोहन तोड़ने के लिए जब विष्णु जी ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए थे तो उनमें से कमर अर्थात बेला का हिस्सा यहां पर गिरा जिसकी वजह से इस जगह का नाम बेला पड़ा। इस तरह से संपूर्ण भारतवर्ष में फैले 52 शक्तिपीठों में से एक बेल्हा देवी का यह स्थान भी है।
प्रतापगढ़ के MD PG कॉलेज में प्राचीन इतिहास के प्राध्यापक डॉक्टर पीयूष कांत शर्मा जी के अध्ययन के अनुसार यह बात सामने आई कि महाराणा प्रताप की पुत्री बेला का विवाह यहां पर रहने वाले ब्रह्मा नाम के व्यक्ति के साथ हुआ था। गवना से पहले ही ब्रह्मा की मृत्यु के दुखद समाचार के कारण बेला ने सई नदी के किनारे समाधि ले ली और तभी से इस जगह का नाम बेला के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
मन्दिर के पश्चिमी छोर पर हनुमान जी का मन्दिर है। उसके ठीक बगल में ही पूजा, धार्मिक अनुष्ठान व वैवाहिक कार्यक्रम इत्यादि के संचालन के लिए एक छोटी सी शरण स्थाली का भी निर्माण किया गया है। जहां से सई नदी का अनुपम दृश्य दिखाई देता है।
सईं नदी घाट पर ठीक सीढ़ियों के पास शंकर जी का मन्दिर है जहां श्रद्धालु रुद्राभिषेक आदि का कार्यक्रम संपन्न करते हैं।
मंदिर के पिछले भाग में मुख्य तिथियों पर मेले का आयोजन किया जाता है। स्त्रियों के श्रृंगार बच्चों के खिलौने आदि विभिन्न तरह की सामग्रियां आपको घाट के पास लगे दुकानों में आसानी से प्राप्त हो सकती हैं।
शुक्रवार और सोमवार को यहां मेला लगता है, जिसमें जनपद ही नहीं बल्कि आस पास के कई ज़िलों के लोग पहुंचकर माँ का दर्शन पूजन करते हैं। हज़ारों श्रद्धालु दर्शन को आते हैं, रोट चढ़ाते हैं, बच्चों का मुंडन कराते हैं और निशान भी चढ़ाते हैं। बेला मंदिर बाद में जन भाषा में बेल्हा हो गया और यही इस शहर का नाम पड़ गया।
Belha Devi Temple is an old Hindu temple in the city of Bela Pratapgarh, dedicated to the goddess Belha, the local incarnation of the Devi (Mother Goddess).
Belha Devi Temple is another Shakti temple situated in Pratapgarh district of Uttar Pradesh state of India. The name of the city Bela (now called Bela Pratapgarh or Pratapgarh) is derived from Maa Belha Devi. This temple is dedicated to city's patron Goddess Belha Bhavani.
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belha devi dham pratapgarh
belha devi dham pratapgarh
Belha Devi Temple is an previous Hindu temple in the city of Bela Pratapgarh, dedicated to the goddess Belha, the nearby incarnation of the Devi . Belha Devi Temple is another Shakti temple situated in Pratapgarh district of Uttar Pradesh state of India. The identify of the city Bela is derived from Maa Belha Devi. This temple is devoted to city's patron Goddess Belha Bhavani.
Mata Belha Devi Temple at Pratapgarh is a symbol of Hindu culture and faith. The shrine found on the financial institution of Sai river is an epitome of age old tradition of Shakti' worship in northern India. Belha Devi becoming the abode of Shiva and his consort 'shakti' became centre of shakti worship.
However, the existing temple which stands a witness to the exciting past of the Pratapgarh area is about two hundred years old.The archeological treasures unearthed from uttar pradesh region throw eloquent light on the history and culture of the spot from the prehistoric to the latest times.
Although owing to the onslaught of instances and climes a lot of tangible realities of the cultural manifestations of the area have been lost in the oblivion, however there are particular issues which by no means die out. One this kind of actuality is the Belha Devi Shrine and the tradition of shaktism practised in this component of the country, the place the previous has been rejuvenated for sustaining one particular of the residing traditions of shaktism in India.
This temple had the patronage of Awadh State. The raja of Pratapgarh appointed pujari as Pujari Title' of this temple whose duty was to worship the deity of the temple. After the merger of princely State into district these pujaris grew to become independent on the matter of controlling and managing the affairs of the temple and the land connected to the temple. They are keeping this temple and providing needed amenities to the going to devotees and thus the condition of the temple progressed day by day. So much so that there were suitable arrangements for pilgrims going to the temple in the course of Navaratra melas.
Source:
Bela bhavani mandir dharwar
चला चला बेला माई के दुवारिया - Bela Mata Bhajan | Chala Chala Bela Mai Ke Duwariya | Ajeet Pandey
Album - Chala Chala Bela Mai Ke Duwariya
Singer – Ajeet Pandey
WAVE MUSIC
Chandikan Dham, Sandwa Chandika, Pratapgarh | चन्दिकन धाम, संडवा चण्डिका, प्रतापगढ़
दैत्य गिरे, दानव गिरे
राख हुए संताप,
उग्र रूप लें चंडी देवी,
भष्म करें सब पाप
चंदिकन धाम की इस यात्रा पर हम चार अलग-अलग मार्गो से होकर जाएंगे।
पहली यात्रा के दौरान हम घंटाघर से होते हुए राजा पाल टंकी चौराहा, पुलिस लाइन चौराहा, अंबेडकर चौराहा से गुजरते हुए दहिलामऊ तिराहा या कंपनी गार्डन तिराहा से गायघाट वाली रोड पकड़कर जानकीपुरम से होते हुए सई नदी के ऊपर बने गाय घाट के पुल को पार करते हैं। रास्ते में हर किलोमीटर पर संडवा चंडिका के नाम से मील का पत्थर आपको दिखाई पड़ता है। कुछ ही देर बाद आप गडवारा के बाजार में पहुंच जाते हैं। यह रोड सीधा आपको ले जाती है चंदिकन धाम। इस यात्रा में आपको लगभग 18.5 कि.मी. चलना पड़ता है।
इसके अलावा यदि आप घंटाघर से फैजाबाद हाईवे को पकड़ कर आगे बढ़ते हैं तो सई नदी के पुल को पार करने के बाद चिलबिला फ्लाईओवर के नीचे से गुजरते हुए अमेठी वाली रोड पर चलते हुए कुछ ही देर बाद आप बाबू गंज की बाजार में प्रवेश करते हैं। यहाँ से चन्दिकन रोड पर 3 किलोमीटर चलने के बाद आप चंडिका मंदिर तक पहुंच जाते हैं। इस दौरान आपको तकरीबन 23 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।
और अगर आप अंतू स्टेशन पर उतरने के बाद चंदिकन धाम तक आना चाहते हैं तो अंतू स्टेशन से कोतवाली वाली सड़क पर आगे बढ़ते हुए तकरीबन 1.5 किलोमीटर बाद आप अमेठी वाली रोड पर पहुंचते हैं जहां से बाबू गंज बाजार पहुंचने के बाद चंदिकन धाम जाने की सड़क मिल जाती है। इस दौरान आपको सिर्फ 4.5 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
और यदि आप लीलापुर, कटैया, बहुचरा, बोझवा, तेजगढ़ की तरफ से चन्दिकन आना चाहे तो कौल बझान में स्थित सई नदी के पुल को पार करके तकरीबन 13.5 किलोमीटर बाद आप चंदिकन धाम पहुंच सकते हैं। हालांकि बहुचरा में अभी पुल निर्माणाधीन है। पुल के अभाव में लोग नाव के माध्यम से अपने वाहनों को इस पार से उस पार ले जाते हैं। यदि इस पुल का निर्माण हो गया तो बहुचरा से चंदिकन तक पहुंचना और भी आसान हो जाएगा।
पौराणिक कथा-
चंडी देवी को “चंडिका” के नाम से भी जाना जाता है , जो कि इस मंदिर की ईष्टदेव है | चंडिका देवी की उत्पत्ति की कहानी कुछ इस प्रकार है , प्राचीन समय में दानव राजा शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्ग के देव राज इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निकल दिया | देवताओं की कठोर विनती के बाद , माता पार्वती ने देवी चंडी का रूप धारण किया जो कि देखने में अतिसुन्दर थी | उनकी खूबसूरती देखने के पश्चात शुम्भ उनसे शादी करने के लिए इच्छुक हुआ |
शुम्भ के शादी के प्रस्ताव को ठुकराने पर उसे बहुत गुस्सा आया और उसने उन्हें मारने के लिए अपने दो असुर चंड और मुंड को भेजा | उन दोनों को माँ चामुंडा ने मार दिया जो चंडिका के क्रोध से उत्पन्न हुयी थी | इसके पश्चात शुम्भ और निशुम्भ दोनों ने ही देवी चंडिका को मारने कि कोशिश की थी बजाय इसका देवी ने इन दोनों दानवो को मृत्यु के घाट उतार दिया |
चन्दिकन मन्दिर की प्राचीनता में मतभेद है। कुछ लोग कहते हैं कि यह मंदिर 2000 साल पुराना है एवं कुछ की मान्यता है कि यह मात्र 300 साल पहले बना था। मन्दिर किसने बनवाया इसके बारे में कोई ठीक ठाक जानकारी उपलब्ध नहीं है। मन्दिर की आसपास घने जंगलों में बंदरों के विशाल झुण्ड हर समय चहलकदमी करते हुए दिखाई पड़ते हैं। मान्यता है कि ये बंदर माता कि सुरक्षा के लिए हैं। हर मंगलवार को यहाँ बड़ी बाजार लगती है जिसमें भारी संख्या में लोग आते हैं।
Chandikan Devi Temple is a Hindu temple of goddess Kali located Sandwa village at a distance of about 24 km from Pratapgarh on Pratapgarh-Raipur Road, about 40 km from Sultanpur & 101 from Ayodhya in Pratapgarh District, Uttar Pradesh.
A religious fair is held on every Tuesday and considerable trade is carried out in the fair. On 8th-9th day of Chaitra and Ashwin a great fair is also held here. The biggest annual fair is held on 'Budhwa Mangal' day and Chandika Mahotsava is celebrated on 8th-9th day of Navratri month.
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Belon Devi-Aarti & Kirtan- MAA SARVMANGALA DEVI- Uttar Pradesh
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Pratapgarh Belha devi Dham in Navratri |Belha Devi temple | मां बेल्हा देवी प्रतापगढ़ |
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Belha Devi Temple ( बेल्हा देवी मंदिर) is an old Hindu temple in the city of Bela Pratapgarh, dedicated to the goddess Belha, the local incarnation of the Devi (Mother Goddess).
Belha Devi Temple is another Shakti temple situated in Pratapgarh district of Uttar Pradesh state of India. The name of the city Bela (now called Bela Pratapgarh or Pratapgarh) is derived from Maa Belha Devi. This temple is dedicated to city's patron Goddess Belha Bhavani.
Mata Belha Devi Temple at Pratapgarh is a symbol of Hindu culture and faith. The shrine located on the bank of Sai river is an epitome of age old tradition of Shakti worship in northern India. Belha Devi being the abode of Shiva and his consort ’shakti’ became centre of shakti worship.
However, the present temple which stands a witness to the exciting past of the Pratapgarh region is about two hundred years old.The archeological treasures unearthed from uttar pradesh region throw eloquent light on the history and culture of the area from the prehistoric to the recent times. Although owing to the onslaught of times and climes many tangible realities of the cultural manifestations of the region have been lost in the oblivion, yet there are certain things which never die out. One such reality is the Belha Devi Shrine and the tradition of shaktism practised in this part of the country, where the past has been rejuvenated for sustaining one of the living traditions of shaktism in India.
History:-
Raja Pratap Bhahadur Singh of Awadh constructed the present main temple of Shri Belha Devi, which is situated on the bank of Sai river in District Pratapgarh, during the period 1811–15.
This temple had the patronage of Awadh State. The raja of Pratapgarh appointed pujari as Pujari Name of this temple whose duty was to worship the deity of the temple. After the merger of princely State into district these pujaris became independent on the matter of controlling and managing the affairs of the temple and the land attached to the temple. They are maintaining this temple and providing necessary facilities to the visiting devotees and thus the condition of the temple progressed day by day. So much so that there were proper arrangements for pilgrims visiting the temple during Navaratra melas.
About the deity:-
In the sanctum sanatorium #Belha_Devi is worshiped in the form of pindi (stone pebbles). Originally the pindis were only worshiped by the devotees. However, in modern times a marble bust of the deity was got sculpted for giving an attractive human look (form) to the deity. The Goddess is beautifully decorated with crown and other ornaments.
In the sanatorium the Devi is worshiped in its anthropomorphic form sculpted on marble. The bust is enshrined in a silver-plated small vaulted shrine showing a beautiful decoration of silver embossing works throughout the body of the miniature vaulted shrine. Here also the pindi (stone) is worshiped along with the marble bust.
Darshan timing:-
The temple remains open from 4am to 10pm in the summer and from 5am to 9pm in the winter. Everybody can have Darshan during this period by entering from main gate. There is a separate gate for exit. Red Stone Pavement of size 75’ × 105’ has been provided in front of Shakti Dhwaj where devotees wait for their turn. Brass railing from Shakti Dhwaj to Ardh Mandap has been laid so that devotees may enter the temple in two queues and have easy Darshan without any difficulty of rush. The devotees are allowed to bring packed parshad in the mandir. The Parshad so offered by the devotees is placed in the feet of the deity and returned to the devotees. Offering in kind is poured in the Dan Pater placed in front of each temple.
Maa Durga Bhakti Dhaam Chandipur Pratapgarh full documentary
माँ दुर्गा भक्ति धाम चंदीपुर प्रतापगढ़!
प्रतापगढ़ घंटाघर से लगभग 3 किलोमीटर दूर चिलबिला,
इलाहाबाद फैजाबाद रोड पर सुल्तानपुर की तरफ बढ़ते हुए चिलबिला चौराहे से तीन किलोमीटर आगे गोड़े
वही गोड़े जिसकी वजह से प्रतापगढ़ को आंवले का गढ़ माना जाता है।
क्योंकि यहां से आँवला डाबर और पतंजलि जैसी बड़ी कंपनियों में सप्लाई होता है।
गोड़े से होते हुए नरहरपुर वाली सड़क से गुजरते समय हम खुद को एक हरे भरे मैदान में पाते हैं जिसके बीच से पानी का एक बहता हुआ नाला दिखाई पड़ता है। स्थानीय लोग इसे मोछहा का नाला कहते हैं।
इस नाले में पानी किसी भूमिगत स्रोत से आता है जो आगे जाकर चमरौरा नदी में मिलता है।
इसके आस पास की जगह साल भर इसी तरह हरी-भरी रहती है जिसमें चरते हुए जानवरों को देखकर एक विशाल चारागाह का अनुभव होता है।
हरे-भरे लहलहाते खेतों के बीच से बलखाती हुई सड़क पर सफर करते हुए काफी दूर से हमें चंदीपुर का श्वेत मंदिर दिखाई पड़ता है। जिसको देखते ही मन में यह प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसी सुदूर और वीरान जगह पर इस मंदिर के निर्माण का क्या कारण हो सकता है? इस मंदिर का निर्माण प्रतापगढ़ के चंदीपुर नामक जगह पर जन्मे और मुंबई में कार्यरत एक सफल व्यवसाई अरुण मिश्रा जी ने अपनी मां फूलकली मिश्रा जी की स्मृति में करवाया था। इस मंदिर की सुंदरता देखकर अनायास ही मन मंत्र मुक्त हो जाता है अथाह शांति मिलती है। आत्मा से आवाज आती है कुछ क्षण रुक कर माँ दुर्गा के दर्शनों का लाभ लिया जाए। नवरात्रि के दिनों में यहां पर दूर-दूर से लोग मां दुर्गा की पूजा-आराधना के लिए आते हैं। उस वक्त यहां की शोभा और कोलाहल देखने योग्य होता है। हर साल यहां लोकगीत कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है जिसमें भोजपुरी के जाने-माने प्रतिष्ठित गायक एवं कलाकार सम्मिलित होते हैं।
मंदिर की दीवार पर मां के प्रति समर्पित अपने भाव को कुछ इस तरह के शब्दों में व्यक्त किया गया है
----------------माँ की कविता----------------
मेरी दुनिया है माँ, तेरे आंचल में,
शीतल छाया तू, दुख के जंगल में,
मेरी राहों के दीए, तेरी दो अखियां,
मुझे गीता से बड़े, तेरी दो बतियां,
युग में मिलता है, वह मिला है पल में,
मेरी दुनिया है माँ तेरे आंचल में।
मैंने आँसू भी दिए, पर तू रोई ना,
मेरी निंदिया के लिए, बरसों सोई ना,
ममता गाती रही, गम की हलचल में,
मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में।
काहे ना धोकर पीए, यह चरण तेरे माँ
देवता प्याला लिए, दर पर खड़े माँ,
अमृत सबका है, इस गंगाजल में,
मेरी दुनिया है माँ, तेरे आंचल में।
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Chandika Devi Temple video part-1 (Chandikan)
Village Sandwa Chandika
Block Sandwa Chandrika
District Pratapgarh
State Uttar Pradesh
Country India
Continent Asia
Time Zone IST ( UTC + 05:30)
Currency Indian Rupee ( INR )
Dialing Code +91
Date format dd/mm/yyyy
Driving side left
Internet cTLD in
Language Hindi, Urdu
Time difference 1 minutes
Latitude 25.911731
Longitude 82.005086
Sandwa Chandika is a village panchayat located in the Pratapgarh district of Uttar-Pradesh state, India. The latitude 25.911731 and longitude 82.005086 are the geocoordinates of the Sandwa Chandika.
You can visit here via Bus or your own vehicle easily.
Nearest railway station is Amethi (Uttar Pradesh).
Birla Mandir : Hindu temple in Delhi
Laxmi Narayan Temple, also known as Birla Mandir, is one of Delhi's major temples and a major tourist attraction. Built by the industrialst Sh. J.K. Birla in 1939, this beautiful temple is located in the west of Connaught Place.
Birla Mandir The temple is dedicated to Laxmi (the goddess of prosperity) and Narayana (The preserver). The temple was inaugurated by Mahatma Gandhi on the condition that people of all castes will be allowed to enter the temple.
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Belha Durga mandir Darshan 2017
super hit....Devi song...
बेला नगरिया NA // Papular TOP Bhojpuri devigeet 2015 // Abhishek Mantu
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Label: MAA JANKI SERIES
Singer : Abhishek Mantu
Album : Bela Mai ke Mahima
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The Village | 4K | Pratapgarh Allahabad Sultanpur Amethi Raebareli Faizabad Uttar Pradesh India
इलाहाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अमेठी, रायबरेली, फैजाबाद जिला अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहाँ अवधी बोली जाती है। अवध वह क्षेत्र है जहां प्रभु श्री राम का जन्म हुआ। उनका लुभावन बचपन गुजरा।
आओ चले गाँव की ओर,
घूमे फिर से लेकर साइकिल
पैडल मारें पूरा जोर
खूंटा, हौदा और सिल बट्टा
एसी, पंखा, कूलर छोड़
आओ चले गाँव की ओर,
कहें कहानी नाना-नानी
जिसमें रहते डाकू, चोर
चापाकल का पानी पीके
गाय दिखें भैस से गोर
आओ चले गाँव की ओर,
नदी किनारे भैस चराते
मछली पकड़े घर ले जाते
कंडा उपरी फूटी गगरी
मारके ढेला अमिया तोड़
आओ चले गाँव की ओर,
जेठ दुपहरी पंक्षी बौराये
ताल पोखरा उनको भाये
ट्यूबिल के ठंडे पानी में
खूब नहायें करके शोर
आओ चले गाँव की ओर,
वीरान हवेली के दरवाजे
भूत प्रेत से शोर मचाते
सूरज ढलने के पहले ही
सरपट भागें करके दौड़
आओ चले गाँव की ओर,
कच्चे माटी पर खपरैला
बचपन के सोधेंपन जैसा
गेंदा कटहल और करौंदा
महक उठेगा चारों छोर
आओ चले गाँव की ओर,
सेमर, भिन्डी और टमाटर
खोद-खोद के खाते गाजर
आंधी आये, पेड़ हिलाए
लेकर झौवा करें बटोर,
आओ चले गाँव की ओर,
गुजरा बचपन फिर से आये
टेशन, बगिया, नहर बुलाये
भूली बिसरी यादों में जब
पंख समेटे गाये मोर
आओ चले गाँव की ओर!
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pratapvasini mata sheetla devi dham pratapgarh
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Pratapvasini Mata Sheetla Devi Dham a creation by MATA SHEETLA DEVI PUBLIC Trust is situated in PRATAPGARH district 60 kms away from ALLAHABAD. You will be commencing your journey from Pratapgarh in Uttar Pradesh and your spot is Sheetla Mata Mandir At Kade in Sheetla Mata Mandir At Kade. Our approx. estimates suggest that the total distance amongst Pratapgarh Sheetla Mata Mandir At Kade is . Your comprehensive travel time by an automobile is anticipated to be mins.
प्रतापगढ़ के सभी प्रसिद्द मंदिर व धाम 2018 | All Temple of Pratapgarh 2018
1. बेल्हा देवी मन्दिर (Belha Devi Temple Pratapgarh)
स्थिती- सई नदी के किनारे, बेल्हा प्रतापगढ़ 230001
घंटा घर से दूरी- 1.6 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- माँ बेल्हा देवी
संस्थापक- राजा प्रताप बहादुर सिंह
शिलान्यास- 1815
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2. लक्ष्मी नारायण मंदिर (Laxmi Narayan Temple Chilbila Pratapgarh)
स्थिती- चिलबिला, प्रतापगढ़ 230403
घंटा घर से दूरी- 3.4 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- लक्ष्मी-विष्णु जी
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3. प्रतापवासिनी शीतला देवी धाम (Pratapvasini Shitla Devi Temple Pratapgarh)
स्थिती- कटरा-मेदनीगंज, प्रतापगढ़ 230131
घंटा घर से दूरी- 8.0 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- माँ शीतला देवी
संस्थापक- संगम लाल गुप्ता
शिलान्यास- 2 मार्च सन 2015
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4. माँ दुर्गा भक्ति धाम चंदीपुर (Durga Bhakti Dhaam Chandipur Pratapgarh)
स्थिती- चंदीपुर, प्रतापगढ़ 230401
घंटा घर से दूरी- 13.5 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- माँ दुर्गा
संस्थापक- अरुण मिश्रा
शिलान्यास- 19 मार्च सन 2010
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5. बराही देवी या चौहरजन देवी धाम (Barahi Devi or Chauharjan Devi Temple Pratapgarh)
स्थिती- सई नदी के किनारे, परशरामपुर, प्रतापगढ़ 230304
घंटा घर से दूरी- 14.0 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- बराही देवी (चौहरजन देवी)
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6. शनिदेव धाम (Shani Dev Dhaam Pratapgarh)
स्थिती- बकुलाही नदी के किनारे, कुशफरा, प्रतापगढ़ 230404
घंटा घर से दूरी- 16.1 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- भगवान शनिदेव
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7. बाबा बेलखरनाथ धाम (Baba Belkharnath Dham Pratapgarh)
स्थिती- सई नदी के किनारे, अहियापुर, प्रतापगढ़ 230412
घंटा घर से दूरी- 16.4 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- बाबा भोलेनाथ
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8. चंदिकन देवी धाम (Chandika Devi Temple Pratapgarh)
स्थिती- संडवा चण्डिका, प्रतापगढ़ 230503
घंटा घर से दूरी- 20.0 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- चंडिका देवी
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9. भयहरण नाथ धाम (Bhayaharan Nath Dham Pratapgarh)
स्थिती- बकुलाही नदी के किनारे, पूरे तोरई, कटरा गुलाब सिंह, प्रतापगढ़ 230402
घंटा घर से दूरी- 30.6 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- बाबा भोलेनाथ
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10. घुइसरनाथ धाम (Ghuisarnath Dhaam Pratapgarh)
स्थिती- सई नदी के किनारे, लालगंज अझारा, प्रतापगढ़ 230132
घंटा घर से दूरी- 45.0 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- बाबा भोलेनाथ
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11. मनगढ़ धाम (Mangarh Temple Kunda Pratapgarh )
स्थिती- मनगढ़, कुंडा, प्रतापगढ़ 230204
घंटा घर से दूरी- 65.8 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- राधा-कृष्ण
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12. हौदेश्वरनाथ धाम (Haudeshwarnath Dhaam Pratapgarh)
स्थिती- गंगा नदी के किनारे, हौदेश्वरनाथ धाम, प्रतापगढ़ 230201
घंटा घर से दूरी- 69.3 किलोमीटर
मुख्य मूर्ती- बाबा भोलेनाथ
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Ghanta Ghar Pratapgarh | घंटा घर प्रतापगढ़ का सुन्दर दृश्य
क्या आपने कभी घंटा घर को इस नज़रिए से देखा है? यदि आप घंटा घर के ऊपर खड़े हो जायें तो आपको क्या दिखाई पड़ेगा? आपको दिखाई पड़ेगा गाड़ियों की भीड़, चलते और दौड़ते हुए लोग, एक कोलाहल, शोर, ऐसा लगेगा जिसे जिंदगी आपस में धक्कम-धुक्का करते हुए आगे बढ़ रही है। सांस ले रही है। चल रही है। इस नज़रिए से कम से कम एक बार चीजों को देखेंगे तो शायद आपको कुछ ऐसा दिखाई पड़ेगा, कुछ ऐसा महसूस होगा जिसे आपने पहले कभी महसूस नहीं किया होगा।
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